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एनएसजी पर चीन को मनाने की कोशिश

परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के प्रतिष्ठित समूह एनएसजी का भारत सदस्य बन पाता है या नहीं यह अब पूरी तरह से ताशकंद में होने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच होने वाली बातचीत पर निर्भर करेगी। पीएम मोदी वैसे तो ताशकंद में शंघाई कोऑपरेशन संगठन (एससीओ) की बैठक में हिस्सा लेने जा रहे हैं लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य एनएसजी पर चीन को मनाने की कोशिश करना होगा।मोदी गुरुवार यानी 23 जून, 2016 को उबेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में एससीओ की बैठक में हिस्सा लेने पहुंचेंगे। वैसे इस बैठक में भारत को भी एससीओ का पूर्णकालिक सदस्य बनाने की घोषणा भी की जाएगी। उधर, भारत के एनएसजी सदस्य बनने को लेकर चीन के रवैये में कोई खास अंतर नहीं आया है। चीन के विदेश मंत्रलय की तरफ से गुरुवार को दिए गए बयान से साफ है कि वह भी अंत में ही अपने पत्ते खोलेगा। एक तरफ तो चीन ने कहा कि वह भारत या पाकिस्तान या किसी भी अन्य देश के लिए एनएसजी के दरवाजे को बंद नहीं करना चाहता लेकिन उसने भारत को बढ़ावा दे रहे अमेरिका व अन्य देशों पर कटाक्ष भी किया। चीन के विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता ने कहा है कि परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले किसी भी देश को एनएसजी में शामिल नहीं करने के नियम तो अमेरिका ने ही तय किए थे। सनद रहे कि अमेरिका अब इस नियम को खास तवजो नहीं देते हुए सभी देशों से आग्रह कर रहा है कि वह भारत को एनएसजी में प्रवेश दिलाने में मदद करे। अमेरिका के व्हाइट हाउस और विदेश मंत्रलय ने अलग-अलग बयान जारी कर भारत की दावेदारी का न सिर्फ जोरदार समर्थन किया बल्कि सभी सदस्य देशों से भी भारतीय दावे का समर्थन करने की वकालत की है। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉन अर्नेस्ट ने कहा है कि भारत एनएसजी का सदस्य बनने के लिए पूरी तरह से तैयार है। उधर, विदेश सचिव एस. जयशंकर का एनएसजी बैठक में हिस्सा लेने के लिए सियोल (दक्षिण कोरिया) जाना तय हो गया है। विदेश मंत्रलय के सूत्र मानते हैं कि चीन के विरोध की वजह से विदेश सचिव की बीजिंग यात्र से जो उम्मीद बनी थी वह धुंधली हो गई है लेकिन फिर भी हम हरसंभव कोशिश करने में जुटे हैं। यही वजह है कि चीन को मनाने के लिए अब पीएम मोदी भी आजमाइश करेंगे। पीएम मोदी लगातार एनएसजी के लिए व्यक्तिगत कोशिश कर रहे हैं। इसके पहले वह अमेरिका यात्र के दौरान बीच में स्विटजरलैंड और मैक्सिको की यात्र कर इन दोनों देशों का समर्थन हासिल कर चुके हैं। पीएम मोदी की लगातार यह कोशिश रही है हर अंतरराष्ट्रीय बैठक में वह चीनी राष्ट्रपति के साथ द्विपक्षीय बैठक करें। मोदी और चिनफिंग के बीच पिछले दो वर्षो में सात मुलाकातें हो चुकी हैं। ताशकंद में आठवीं मुलाकात होगी लेकिन इसका भारत के लिए महत्व यादा होगा। जानकारों की मानें तो 23 जून को मोदी और चिनफिंग की मुलाकात होगी और उसके एक दिन बाद 24 जून को सियोल में एनएसजी की बैठक में नए सदस्य के शामिल होने पर फैसला होगा। अभी तक के जो आंकड़े हैं उसके मुताबिक एनएसजी के 48 देशों में से तकरीबन 24 देश भारत के साथ खुल कर आ चुके हैं। जबकि चीन, तुर्की, आयरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, आस्टिया अभी भी भारत के पक्ष में नहीं हैं। शेष बचे देश अभी अनिर्णय की स्थिति में तो हैं लेकिन भारत उनको अपने साथ मान कर चल रहा है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पहले ही कह चुकी हैं कि भारत के लिए एनएसजी में शामिल होना देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से बहुत अहम है। भारत वर्ष 2030 तक 65 हजार मेगावाट बिजली परमाणु ऊर्जा पर आधारित रखना चाहता है। इसके लिए भारत को बड़े पैमाने पर विदेशों से परमाणु ऊर्जा से जुड़ी तकनीक चाहिए। यह काम एनएसजी का सदस्य बनने के बाद आसान हो जाएगा।
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